खत वाला PYAAR - 1 Ek_Gunjati_AAWAZ द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

खत वाला PYAAR - 1

मे आज आपके सामने एक कहानी लेकर आई हुँ । आशा करती हुँ की, आपको मेरी यह कहानी पसंद आयेगी । तो शुरु करती हुँ ।

में कभी भी इतनी सुबह उठती नही हुँ पर पता नही क्यो आज इतनी सुबह नीन्द उड गइ। उठकर देखती हूँ कि, माँ सबके लिए नास्ता बना रही होती हैं। दादी माँ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर रही होती हैं । पापा भी इतनी सुबह उठकर टहलने चले गए होते हैं। अरे.....में तो अपने भाई के बारे मे तो कहना ही भूल गई, वो ना बहुत ही खडुस टाइप का हैं हर वक्त मुझसे झगडता ही रहेता हैं आज कहेता हैं की, इतनी सुबह क्यों उठ गई ? इस लडाई मे ही कुछ ऐसा होता हैं की.......... दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई......और

हमारे यहां कोई खत नहीं भेजता। क्योंकि हमारे घर में वह पुराने वाला, नंबर घुमाने वाला, काले रंग का फोन है । अगर किसी को भी हमसे कोई बात करनी हो या हमसे कोई काम हो तो वे सीधे ही हमें फोन कर सकते है ।
पर पता नहीं क्यों?
आज हमारे घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मैैं तो सोच मैं ही पड़ गई कि इतनी सुबह कौन आया होगा ? मेरे हाथ में जो कपड़े थे वह मैंने कपड़े यहां वहां फेंक दिए और फटाक से दौड़ पड़ी दरवाजा खोलने के लिए। जाकर दरवाजा खोल कर देखती हूं कि हाय हाय रे .........!

हमारे यहा पोस्टमैन ?
हमारे घर मै पोस्ट ?


तो सोच में ही पड़ गई कि यह क्या? फिर मैंने उस पोस्टमैन को कहा कि आप किसी गलत जगह पर आ गए हो हमारे घर पर तो फोन है अगर किसी को हमसे कोई काम हो तो हमें सीधा फोन कर सकते हैं । आपसे कोई गलतफहमी हुई है आप ध्यान से फिर से देख लीजिए शायद यहां का पता नहीं होगा ।
मैडम जी ! हमसे कोई गलतफहमी नहीं हुई है अगर आप चाहे तो एकबार आप भी देख सकते हैैं तो मेने देखा तो पता भी यही का था उसमें नाम भी मेरे पापा का था पूरा नाम तो नहीं था बस सरनेम लिखा था सिर्फ के मेहता जी...........
फिर पोस्टमैन ने मुझसे कहा कि मैडम आप यहां पर साइन कर दीजिए तो मैंने उस पर साइन करके उसको रवाना किया और फिर मैं लेटर लेकर अंदर गई तो अंदर मेरी मां और मेरी नानी मां सब मुझसे पूछने लगे कि,
बेटा कौन था ?
कया तुम उसको जानती थी ?
कयु आया था ?

तो मेने ऐसे वैसे ही कुछ गलत बहाना निकाल कर उसको गलत जवाब दे दिया और दौड़ कर मैं अपने ही कमरे में चली गई सोच में ही पड़ गई थी यार इस पते पर कौन खत लिख सकता है और मेरे पापा के लिए ........



आखिर कौन हो सकता है वो खत लीखनेवाला ?
क्या वो मेरे पापा को जानता होगा ?
अगर जानता भी हो तो वो खत क्यु लिख रहा है ?
बात तो फोन पर भी हो सकती है......
यह सब जानने के लिए मेरे साथ जूडे रहिए.......
और सोचते रहिए..........